पहाड़ की कल्पना...इस बेटी के आगे दिव्यांगता ने मानी हार, 23 साल की उम्र में रचा इतिहास
दिव्यांग कल्पना को देखकर हर कोई अफसोस जताता था, पर कल्पना के पिता सकल चौहान ने ऐसे लोगों को जवाब देने की ठान ली थी...
लोग बेटा-बेटी की समानता की बात करते हैं, पर सच तो ये है कि आज भी जब घर में बेटी होती है तो खुशी कम, चेहरों पर मायूसी ज्यादा दिखाई देती है, उस पर अगर बेटी दिव्यांग हो तो परिवार उसे बोझ समझने लगता है। शुक्र है कि उत्तरकाशी के नगाण में रहने वाली कल्पना के साथ ऐसा नहीं हुआ। बचपन से ही दिव्यांग कल्पना को उनके पिता ने खूब लाड़ दिया, बेटी को आगे बढ़ने का हौसला दिया, पिता से मिली हिम्मत की बदौलत कल्पना ने ना सिर्फ अपनी पढ़ाई पूरी की, बल्कि आज वो अपने गांव की प्रधान बन ग्रामीणों के प्रति अपनी जिम्मेदारी ...
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